उपलब्धि : लखनऊ के चार कलाकारों की कृतियों को कोरिया में लगी प्रदर्शनी में मिली जगह

नेचर आर्ट क्यूब प्रदर्शनी कोरिया में दुनियाभर से 362 कलाकृतियों को किया गया है शामिल

क्राइम रिव्यू
लखनऊ। लखनऊ के चार कलाकारों की कलाकृतियों को अंतर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी ” ज्युमगंग नेचर आर्ट प्री- बिएन्नाले 2021- नेचर आर्ट क्यूब प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया है। यह प्रदर्शनी 28 अगस्त से 30 नवंबर 2021 तक लगी रहेंगी।
लखनऊ उत्तर प्रदेश के चार कलाकार जिनमे भूपेंद्र कुमार अस्थाना, धीरज यादव, गिरीश पांडेय और मनीषा कुमारी की एक एक कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। ज्ञातव्य हो कि इस प्रदर्शनी में दुनियाभर से 362 कलाकृतियों को शामिल किया गया है। यह सभी कलाकृतियां प्राकृतिक तरीकों से बनाई गई हैं। दरअसल यह प्रदर्शनी कोरिया की संस्था और वहाँ की संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से हर साल आमन्त्रित किया जाता है। जिसमे प्राकृतिक रूप से बनी कलाकृतियों को ही प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही प्रकृति के प्रति जागरूक करने का भी प्रयास किया जाता है। जिसमे दुनियाभर के कलाकार अपने अपने विचारों के अनुसार प्राकृतिक चीजों से बनी कृतियों को इस प्रदर्शनी में साझा करते हैं।
भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने अपने कृतियों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं कि  ईश्वर ने प्रकृति के माध्यम से पृथ्वी पर समस्त मानव को अमूल्य वस्तुओं के बीच रखा है। जिसके माध्यम से सभी का जीवन सकुशल संचालित होता रहता है। इस कृति के माध्यम से मैंने प्राकृतिक कृति की रचना की है। शीर्षक “बर्गर” जो खाने की वस्तु है यह एक भूख की निशानी है। इस रूप में मैंने इंसान की भूख को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इस कृति का निर्माण पेड़ के सूखे पत्तों और लकड़ी के छीलन से किया गया है।
धीरज यादव ने नेचर क्यूब आर्ट बिन्नाले में भेजे कृतियों के बारे में बताया कि मेरे कार्य भारतीय संस्कृति का परिचय कराती है। एवं भारतीय संस्कृति में गाय के गोबर को शुद्द माना गया है जो यहाँ की तमाम अनुष्ठानों में शुभकारी भी मानते हैं। इस कृति का निर्माण गाय के गोबर से ही एक ज्यामितीय आकार दिया गया है।
गिरीश पांडेय ने बताया कि मेरी कृतियों में ‘वन-देवता’ मानव जहां अपने जीवन और पर्यावरण के लिए परम शक्तिमान ईश्वर की प्रतीकात्मक मूर्ति पर दायित्व सौंप कर ईश्वर की पूजा करने लगता है, पर इन सब के बीच वह भूल जाता है कि स्वयं उसके भी कुछ कर्तव्य एवं जिम्मेदारी भी है। ‘वन देवता’ के ध्वंस हुए मंदिर के आस पास के कटे वृक्ष इसी भावना को प्रदर्शित कर रहे है। मेरी  यह कृति इसी भावना से प्रेरित है।
वहीं मनीषा कुमारी ने भारतीय स्थापत्यकला के साथ साथ ज्यामितीय आकारों में एक अमूर्तन का प्रभाव प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। जिसमे।लकड़ी के एक क्यूब के माध्यम से स्थापत्य कला को चिन्हित किया गया है।

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