लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की शाखा दिल्ली शोध केंद्र द्वारा मासिक ऑनलाइनलघु कथा व गोष्ठी का आयोजन

लघुकथा के रंग थोपे हुए नही लगने चाहिए व लघुकथा का निष्कर्ष देने के बजाय उसे पाठकों की समझ पर छोड़ देना चाहिए : शोभना श्याम

क्राइम रिव्यू

नईदिल्ली। लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की शाखा दिल्ली शोध केंद्र द्वारा रविवार को मासिक लघुकथा गोष्ठी व परिचर्चा का आयोजन किया गया। समीक्षा के लिए शोभना श्याम को आमंत्रित किया गया था। जिन्होंने अपनी खूबसूरत व सटीक समीक्षा से सभी को लाभान्वित किया।उनका कहना है कि लघुकथा के रंग थोपे हुए नही लगने चाहिए व लघुकथा का निष्कर्ष देने के बजाय उसे पाठकों की समझ पर छोड़ देना चाहिए।

लतिका बत्रा की लघुकथा ” ममता ” एक माँ के अंतर्द्वंद्व को बयान करती है।

नीता सैनी की लघुकथा “मुस्कराहट वाली चादर ” एक विधवा के पुनर्विवाह के बाद के दर्द को दर्शाती है।

वसुधा कनुप्रिया की लघुकथा ” मर्दानगी ”
हमें तीन तरह के मर्दों की मर्दानगी दिखाती है।

महेंद्र कौर जी की लघुकथा “सफाई ” एक बेटी कैसे
माँ के घर को पूरी तरीके से साफ कर देती है बताती है।

मीनाक्षी भटनागर की लघुकथा “ज़िंदगी और चाय पत्ती ” दोस्ती का फर्ज दर्शाती है।

अंजू खरबंदा की लघुकथा ” बुलावा ” किन्नर विमर्श को खूबसूरत तरीके से दिखाती है।

शोध केंद्र की सरपरस्त कांता राय ने सभी का स्वागत किया व लघुकथा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी।
संचालन रेनुका सिंह द्वारा किया गया व धन्यवाद ज्ञापन अंजू खरबंदा ने दिया।

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