विभाजन की त्रासदी व मानवीय संवेदनाओं को रेखांकित कर गया नाटक ʼ गुलाम रिश्ते

अभिनव नाट्य समारोह अंतिम समापन सन्ध्या 

क्राइम रिव्यू

लखनऊ। सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था निसर्ग के तत्वावधान में सन्त गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में चल रहे अभिनव नाट्य समारोह की आज पांचवी और अंतिम समापन संध्या में वरिष्ठ नाट्य लेखक मोहम्मद असलम खान द्वारा लिखित एवं देवाशीष मिश्रा द्वारा निर्देशित नाटक ʼ गुलाम रिश्ते ‘ ने बंटवारे की त्रासदी व मानवीय संवेदनाओं को रेखांकित किया।

‘लेखक एक- नाट्य अनेक’ थीम से सजे नाट्य समारोह की अंतिम संध्या में कन्सर्न्ड थिएटर की प्रस्तुति के तहत मंचित नाटक ‘ गुलाम रिश्ते ‘ ने  1947 के भारत-पाक विभाजन की त्रासदी को दर्शाते हुए जहां मानवीय संवेदनाओं के रिश्ते को रेखांकित किया, वहीं दूसरी ओर बंटवारे से उपजी तमाम तरह की परेशानियों को उजागर कर न केवल सत्ता मोह के कारण एक देश को दो भागों में बांटने की परिणति पर कुठाराघात किया, अपितु दोनो देशों की जनता और शासन को संदेश देता है कि समाज, धर्म और राष्ट्र से बढ़कर मानवता है।मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण रहे नाटक ‘ गुलाम रिश्ते ‘ की कहानी को नाटक का रूप देने में लेखक मोहम्म्द असलम खान ने दो भागों यानि वर्ष 1946-47 और 1966-67 का दृश्य काल सृजित किया है। नाटक की कथावस्तु के अनुसार 1945-46 अविभाजित भारत के कराची नगर में बँटवारे की आशंका और दंगों की सम्भावना से सभी चिंतित हैं। कुछ राजनीतिक लोगों के दुश्चिन्तन से कराची कर कॉंग्रेस के अध्यक्ष सेठ चमन लाल और उपाध्यक्ष सोहराब के बीच मनमुटाव गहरा जाता है। जबकि उनके बीच भाइयों जैसा प्रेम था। परिवारों में एका था। देश दंगों की आग में झुलसने लगता है। सोहराब ग़लत लोगों की बातों में आकर सेठ चमन लाल की हत्या कर देते हैं। सेठ चमन लाल की पत्नी भारती और एक कांग्रेस सदस्य रफ़ीक़ किसी तरह बचते बचाते भारती के माता-पिता दिल्ली आ जाते हैं। जहाँ भारती के माता-पिता के पास उसका बेटा चन्दन दो साल की उम्र से रह रहा है। भारती वकालत का अध्ययन करके वकालत शुरू कर देती है और अपने छोटे भाई समान रफ़ीक़ को अपना सहायक नियुक्त कर उसे भी वकालत की पढ़ाई करवाती है। कुछ दिनों बाद दिल्ली के चावड़ी बाज़ार में बम विस्फोट होता है जिसमें भारती के बेटे चन्दन की हत्या हो जाती है और शिवनाथ नामक व्यक्ति बुरी तरह घायल हो जाता है। पाकिस्तान से आया रोज़े ख़ान नामक युवक इस बम काण्ड के सन्देह में पकड़ा जाता है। भारती के पास ऐसे साक्ष्य हैं जिससे वो रोज़े ख़ान को ही चन्दन की हत्या का दोषी मानती है और अदालत में रोज़े ख़ान को फाँसी दिलाने के लिए पैरवी करती है। दूसरी ओर रफ़ीक़ को यह लगता है कि रोज़े ख़ान निर्दोष है तो भारती के विरुद्ध रोज़े ख़ान को बचाने के लिए पैरवी भी करता है। अनेक घटनाक्रमों के दौरान अन्ततः रोज़े ख़ान को निर्दोष पाया जाता है लेकिन उसके बयानों से एक बहुत ही मार्मिक मानवीय सम्वेदनाओं से भरी कहानी सामने आती है। रोज़े ख़ान अपने बयान में बताता है कि उसकी माँ का देहान्त उसके जन्म के कुछ ही दिन बाद हो गया था। वह भूख से तड़प रहा था। एक हिन्दू माँ ने अपने आँचल का दूध पिलाकर उसकी जान बचायी। बड़े होकर उसकी बुआ ने उसे यह बात बतायी और कहा कि ज़िंदगी में  उस माँ के दर्शन ज़रूर कर लेना। उसी माँ की खोज में रोज़े ख़ान भारत आया हुआ है। रोज़े  ख़ान के इस बयान को सुनकर भारती अवाक रह जाती है। क्यूँकि शिशु रोज़े ख़ान के प्राण बचाने वाली महिला भारती ही थी।मोहम्मद असलम खान ने इस नाटक को जिस खुबसूरती से लिखा है, उसी खुबसूरती से एक एक किरदार को अपनी लेखनी से गढ़ा भी है, उनके लिखे हर शब्द एक एक मोती के तरह हैं, जिन्हे एक नाटक रूपी माला में पिरोया गया। सशक्त कथानक और उत्कृष्ट संवाद अदायगी से परिपूर्ण नाटक ‘ गुलाम रिश्ते ‘ में आशुतोष जायसवाल, अनुपम बिसरिया, शिबू मलिक, आदित्य कुमार वर्मा, नरेंद्र पंजवानी, सागर शर्मा  प्रणव त्रिपाठी  अविनाश श्रीवास्तव, प्रीति चौहान, नीतिश भारद्वाज  गगनदीप सिंह डडियाला, देवांश प्रसाद, रक्षित पांडेय, शुभम तिवारी सहित अन्य कलाकारों ने अपने दमदार अभिनय से रंग प्रेमी दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा। नाट्य नेपथ्य में जामिया शकील, शिवरतन (मंच निर्माण), मनीष सैनी (प्रकाश परिकल्पना), आशीष, शुभम (संगीत), अंशिका क्रिएशन (मुख्य सज्जा) का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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