अवधी फाग गीतों की कार्यशाला की मंच प्रस्तुति पर झूम उठे दर्शक

लोकरंग फाउण्डेशन एवं अवध भारती संस्था के संयुक्त तत्वाधान में हुआ आयोजन

क्राइम रिव्यू
 
लखनऊ। लोकरंग फाउण्डेशन एवं अवध भारती संस्था के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अवधी फाग गीतों की छः दिवसीय कार्यशाला की मंच प्रस्तुति रविवार को बुद्ध ऑडोटोरियम में हुई। जिसमें अवधी फाग गीतों की मनोरम प्रस्तुति की गयी। लोकरंग फाउण्डेशन सचिव कुसुम वर्मा (कल्चर दीदी) के निर्देशन और संचालन में फगुआ, होरी, चौताल, डेढ़ताल, धमार, उलारा और रसिया आदि गीतों की अद्भुत छटा देख सभागार में उपस्थित लोग खुद को थिरकने से नहीं रोक सके।
कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति, प्रो हरिशंकर मिश्र, श्रीमती नूतन वशिष्ठ, प्रो ऊषा बनर्जी, केसी जोशी तथा पूर्व डीजीपी अरविन्द कुमार पाण्डा ने दीप प्रज्वलित करके किया सर्व प्रथम नन्हीं सी देवी अनिका तिवारी के साथ देवीगीत-धीरे-धीरे अंगना मा आय गयी से हुई। इसके बाद झमाझम बाज रही पैजनिया नामक लोकप्रिय धमार की प्रस्तुति हुई। चौताल- पिया पतिया लिखय घरवाली मोरी गोदिया होरिल बिन खाली चला तू आवा हाली ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। धमार-सदा आनन्द रहे यह द्वारा मोहना, री-जोरी न कर पिया होली में उडत अबीर गुलाल रंगीली होली है, देवीगीत एक मन करे आदि अनेक फाग-गीतों ने आनंद का रंग भर दिया। कार्यशाला के प्रशिक्षक कुसुम वर्मा तथा गोण्डा के प्रसिद्ध गायक शिवपूजन शुक्ल ने “रंग डारो न डारो न, डारो पिया गीत के माध्यम से सभागार में फगुनी परिवेश उपस्थित कर दिया। कार्यशाला की उपादेयता के संदर्भ में कुसुम वर्मा और डॉ राम बहादुर मिश्र ने बताया कि होली के अवसर पर गाये जाने वाले पारम्परिक फाग गीतों का गायन समाप्ति के कगार पर है। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए नई पीढ़ी को हस्तांतरित करने के उद्देश्य से यह कार्यशाला आयोजित की गयी। कार्यशाला में डॉ प्रतिभा मिश्र, रमेश कुमार, सरोज श्रीवास्तव, गीता शुक्ला, कल्पना सक्सेना, सुधा कटियार, जया श्रीवास्तव सरिता अग्रवाल, सौरभ कमल, सीमा अग्रवाल, अंशिका मिश्रा, प्रेसी मिश्रा सहित अनेक प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।
आयोजन में विशेष रूप से अशोक बनर्जी, अरुण तिवारी, केके वत्स, डॉ हरिओम त्रिपाठी, लोक संस्कृति शोध संस्थान के निदेशक एस. के. गोपाल, चैतन्य वेलफेयर फाउण्डेशन की अध्यक्ष ओम कुमारी सिंह, मंजू समेत महाराष्ट्र के शोध छात्र उपस्थित रहे।

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