कुशीनगर के सूर्य मंदिर को विकसित करने को सांसद डॉ रमापति राम त्रिपाठी ने संसद में उठाई आवाज

सूर्य मंदिर सनातन धर्मावलम्बियों के लिए भगवान सूर्य की उपासना का केंद्र होने के बावजूद पर्यटन विभाग की उपेक्षा का शिकार

क्राइम रिव्यू
 
नई दिल्ली। कुशीनगर तुर्कपट्टी स्थित सूर्यमंदिर को पर्यटन की दृष्टिकोण से विकसित करने का मुद्दा मंगलवार को संसद में गूंजा। देवरिया के सांसद डॉ रमापति राम त्रिपाठी ने कुशीनगर के इस प्राचीन सूर्य मंदिर को पर्यटन विभाग द्वारा विकसित कराये जाने के लिए केंद्रीय पर्यटन मंत्री से मांग की।
सांसद डॉ त्रिपाठी ने कहा कि बुद्ध की धरती कुशीनगर ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों से समृद्ध है। इन्हीं में से एक है तुर्कपट्टी का सूर्य मंदिर। सूर्य मंदिर सनातन धर्मावलम्बियों के लिए भगवान सूर्य की उपासना का केंद्र होने के साथ साथ उनकी सांस्कृतिक पहचान भी है। मन्दिर में स्थापित प्रतिमा के दर्शन के लिए देश के विभिन्न राज्यों के अलावा नेपाल व म्यांमार आदि देशों से श्रद्धालु आते हैं। इसके बावजूद यह मंदिर पर्यटन विभाग द्वारा उपेक्षित हैं। उन्होंने कहा कि मैं सदन के माध्यम से पर्यटन मंत्री से मांग करता हूँ कि तुर्कपट्टी महुअवां में स्थित सूर्य मंदिर को पर्यटन विभाग द्वारा विकसित किया जाए, जिससे यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सके।
गुप्त कालीन है सूर्य मंदिर में स्थापित प्रतिमा
स्कंद पुराण व मारकंडेय पुराण में वर्णित इस सूर्य प्रतिमा का काल नवीं सदी में गुप्तकाल माना जाता है। प्रतिमा में सूर्य सात घोड़े जुते रथ पर सवार है जिनमें सूर्य की रानियां व सारथी अरूण के अलावा राहु-केतु उकृत है। सूर्य के दोनों हाथों में कमल है और किन्नर तथा गंधर्व इनकी स्तुति कर रहे है। यह प्रतिमा नीलम धातु से निर्मित है।
 
कोर्णाक सूर्य मंदिर की प्रतिमा से अद्भुत समानता
स्थानीय मान्यताओं कर अनुसार तुर्कपट्टी महुअवा गांव निवासी विश्वनाथ शर्मा ने 30 जुलाई 1981 की रात में स्वप्न देखा कि घर के बगल की जमीन में सूर्य प्रतिमा है। अगले दिन सुबह उन्होंने यह बात गांव के लोगों को बताई। स्वप्न में बताई गई जगह पर खुदाई शुरू कराई गई तो वहां विभिन्न देवी देवताओं के मूर्तियों के साथ सात घोड़ों पर सवार, चतुर्भुज रूप में एक सूर्य प्रतिमा मिली। खबर पूरे देश में फैली तो तत्कालीन इतिहासकार चन्द्रमौलि शुक्ल, शैल चतुर्वेदी, पीके लहरी, महावीर प्रसाद कंदोई सहित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण टीम भी पहुंच गई। इतिहासकारों ने प्रतिमा को गुप्तकालीन और बेशकीमती बताया। भारतीय पुरातत्व विभाग ने पूरे क्षेत्र को ऐतिहासिक महत्व बताते हुए महात्मा बुद्ध के समकालीन उच्च संस्कृति का केंद्र होने का दावा किया। मान्यता है कि इस प्रतिमा में कोर्णाक सूर्य मंदिर की प्रतिमा से अद्भुत समानता है।

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