युवा रंग महोत्सव : नृत्य और कविताओं की प्रवाहित हुई सरिता

कोविड के बढ़ते प्रकोप के कारण युवा रंग महोत्सव 23 मार्च तक

क्राइम रिव्यू

लखनऊ । इंस्टीटयूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज के तत्वावधान और श्रीराम समिति ऐशबाग के सहयोग से तुलसी शोध संस्थान में चल रहे युवारंग महोत्सव के आज द्वितीय दिवस मे नृत्य और कविताओं की सरिता प्रवाहित हुई।

संगीत से सजे कार्यक्रम का शुभारम्भ अविका ने 52 गज का लहंगा पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। इसी क्रम मे शचि विश्वास ने पिया मिलेंगे और अविनाश ने राधा कैसे न जले गीत पर भावपूर्ण अभिनय युक्त नृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों की कंजूस तालियाँ बटोरी।

कार्यक्रम के अगले सोपान मे कवि सम्मेलन हुआ, जिसमे सरला शर्मा ने सुनाया- बड़ी दुश्वारियां के बाद आसानी में रहती हूं, चमन में भी मैं काटों की निगहबानीी  में रहती हैं, मुझे ज़ख्मों के ख़जर से निपटना खूब आता है, मैं अपने हौसले हिम्मत की सुल्तानी में रहती हूं।

पंडित आदित्य द्विवेदी की यह बांगी खूब पसंद की गई उनकी पंक्तियां थी- ज्ञान विज्ञान भाषा सुधा संस्कृति बांटकर विश्व में  हम  महकती रहे, कीर्ति उत्तर प्रदेशी गगन  चूमती लोग बनकर दीवाकर चमकते रहे।

ज्योति शेखर ने कहा- कभी खींच के पावों से इसको, कभी तान के सर से देखते हैं, आम आदमी की चादर है ये, छोटी है जिधर से देखते हैं, वो मौत का नंगा नाच हो या, औरत की लुटी इज्ज़त यारो, अब पीड़ा को हम दिल की नहीं, ख़बरों की नज़र से देखते हैं ।

मुकुल महान ने सुनाया- चमगादड़ जैसे लटके हैं , हम त्रिशंकु के आस पास हैं, ना धरती ,ना आसमान हैं ,हम भारत के मिडिल क्लास हैं।

डॉ अशोक अज्ञानी की पंक्तियाँ थीं-सड़कों पर बरगदों की छाँव ढूँढ़ रहे हैं, घट लेकर पनघटों के ठाँव ढूँढ़ रहे हैं, गाँवों में गाँव हमको आज ढूँढ़ रहा है, अफसोस! हम शहर में गाँव ढूँढ़ रहे हैं।

युवारंग महोत्सव के संयोजक मयंक रंजन ने बताया कि कोविड के बढ़ते हुए प्रकोप के कारण युवारंग महोत्सव की नृत्य, फैशन शो, वाद विवाद और क्वीज की प्रतियोगिताए 23 मार्च तक ही चलेंगी।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!