हल षष्ठी : 28 अगस्त को मनाई जाएगी हल षष्ठी
हल षष्ठी व्रत महिलायें अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।
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क्राइम रिव्यू
लखनऊ। हमारे देश में त्योहारों का विशेष महत्व है।
हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्रत व त्योहार बड़ी ही श्रद्धा भाव से पूरे रीति रिवाज के आठ मनाया जाता है। ऐसे ही व्रत त्योहारों में से एक है हल षष्ठी का त्योहार। यह त्योहार श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के जन्मदिवस के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। पारंपरिक हिंदू पंचांग में हल षष्ठी एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी को समर्पित है। भगवान बलराम माता देवकी और वासुदेव जी की सातवें संतान थे।![](https://crimereview.co.in/wp-content/uploads/2021/08/pujaa.jpg)
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हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को बलराम जयंती मनाई जाती है। श्रावण पूर्णिमा के छह दिन बाद हलषष्ठी मनाई जाती है। इसे अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कुछ जगह इसे हल छठ तो कुछ जगह हल षष्ठी नाम से जाना जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से संतान की सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है।
ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल, आचार्य आनंद दुबे के अनुसार षष्ठी तिथि 27 अगस्त शुक्रवार को शाम 6:50 बजे लगेगी। यह तिथि अगले दिन यानी 28 अगस्त को रात्रि 8:55 बजे तक रहेगी ये पर्व भगवान कृष्ण के बड़े भाई श्री बलराम जी के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष यह 28 अगस्त को है। बलराम जी का शस्त्र हल और मूसल है। इसी कारण इनको हलधर भी कहते है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार थे। इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इस दिन हल पूजन का विशेष महत्व है। इसे हल छठ पीन्नी छठ या खमर छठ भी कहते हैं पूरब के जिलों में इसे ‘ललई छठ’ भी कहा जाता है।
माताएं हलषष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु की प्राप्ति के रखती हैं। इस दिन व्रत के दौरान वह कोई अनाज नहीं खाती है तथा महुआ की दातुन करती हैं। हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में वही चीजें खाई जाती हैं जो तालाब में पैदा होती हैं जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल खाकर आदि। इस व्रत में गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। व्रत के दिन घर या बाहर कहीं भी दीवाल पर छठ माता का चित्र बनाते हैं। उसके बाद गणेश और माता गौरा की पूजा करते हैं। महिलाएं इस दिन जमीन को लीप कर घर में ही एक छोटा सा तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं और हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। हल षष्ठी व्रत महिलायें अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए रखती हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान हलधर उनके पुत्रों को लंबी आयु प्रदान करते हैं।