कलाकार समाज में महत्वपूर्ण व सक्रिय भूमिका निभाता है – प्रतुल दास

अस्थाना आर्ट फ़ोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपेन स्पेसेस- आर्ट टॉक एंड स्टूडिओं विज़िट का 14 वाँ एपिसोड में आमंत्रित कलाकार प्रतुल दास, विशेष अतिथि वरिष्ठ आलोचक रविन्द्र त्रिपाठी और बातचीत के लिए अक्षत सिन्हा रहे

क्राइम रिव्यू
लखनऊ। जिसके साथ भी संवेदनशील शब्द जुड़ता है तो उसके लिए एक सामाजिक जिम्मेदारी भी जुड़ जाती है। जिम्मेदार व्यक्ति अपने संवेदनशीलता को अपने विचारों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। यदि कला कोई विचार पैदा नहीं कर रहा तो वह एक कोने में पड़े फर्नीचर के समान है। एक कलाकार समाज का महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। उक्त बातें आज एपिसोड 14 के कला वार्ता में प्रतुल दास ने कही।
– प्रतुल दास ने एक बार जाने माने कलाकार अकबर पदमसी से बात चीत के दौरान की एक महत्वपूर्ण बात साझा की, कि – ” मीडियम यह निर्णय नहीं करता कि आपकी कला अच्छी है या ख़राब ”
अस्थाना आर्ट फ़ोरम के ऑनलाइन मंच पर ओपन स्पसेस आर्ट टॉक एंड स्टूडिओं विज़िट के 14वें एपिसोड का लाइव आयोजन रविवार को किया गया। इस एपिसोड में आमंत्रित कलाकार के रूप में भारत के प्रख्यात समकालीन कलाकार प्रतुल दास रहे। इनके साथ बातचीत के लिए नई दिल्ली के आर्टिस्ट व क्यूरेटर अक्षत सिन्हा और इस कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में जाने माने वरिष्ठ पत्रकार, फ़िल्म, साहित्य, कला एवं रंगमंच आलोचक श्री रविन्द्र त्रिपाठी भी शामिल हुए। कार्यक्रम ज़ूम मीटिंग द्वारा लाइव किया गया। देश और विदेशों से बड़ी संख्या में कार्यक्रम से जुड़े रहे। कार्यक्रम के संयोजक भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि प्रतुल दास मूलतः बुर्ला संबलपुर उड़ीसा के हैं वर्तमान में नई दिल्ली में अपना स्टूडिओं बनाया है। पिछले 22 वर्षो से समकालीन कला के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कलाकार के रूप में स्थापित हैं। प्रतुल दास समकालीन कला में अपनी चित्र शैली ही नहीं बल्कि अपने विचारों और सरोकारों के लिए भी एक अलग पहचान रखते हैं। इनके रेखाएं, रंग पारिस्थितिकी के इस छोर तक जाते हैं जहाँ पर्यावरण में हो रहे उथल पुथल की चिंता है। इनके चित्रों में प्रकृति के खूबसूरती को आसानी से देखा और समझा जा सकता है। किसी भी प्रकार से कला प्रेमियों को कोई असहज या उलझन महसूस नही हो सकता। इनके कैनवास पर सिर्फ रंग या कुछ आकृतियां ही नहीं बल्कि इनके संवेदनशीलता और भावनाएं भी देख व समझ सकते हैं । कलाकार के लिए कोई दायरा नहीं होना चाहिये। विचारों की स्वतंत्रता ही उसकी अभिव्यक्ति है। सिर्फ कला की शिक्षा ले लेने भर से कोई कलाकार नहीं हो सकता, बहुत से ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने कोई शिक्षा नहीं ली लेकिन अच्छे प्रयोग व काम कर रहे हैं। प्रतुल देश के सभी प्रमुख आर्ट गैलरियों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। प्रतुल कहते हैं कि मेरे परिवार में कोई कलाकार नहीं था। लेकिन जब होश संभाला तो एक पत्रिका के माध्यम से मुझे कला की तरफ आने का रास्ता मिला।
आज हमारे देश मे तथाकथित विकास के नाम पर बड़ी बड़ी इमारतें बनाई जा रही हैं कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। मेरे काम पर्यावरण, प्रकृति, समस्त जीव जगत के और मानवीय मूल्यों की कीमत पर हो रहीं अनियंत्रित और असन्तुलित विकास का रूपक है जो मात्र एक संकेत देता है। आज विकास के नाम पर सिर्फ एक अंधी दौड़ है वास्तविकता से बिल्कुल भिन्न। मेरे चित्रों में इन्ही विकास के अंधी दौड़ में मनुष्य द्वारा पैदा की जा रही नए प्राकृतिक आपदाओं के गवाह और मूक दर्शक सभी जीव जंतु हैं।
हम लोगों के कहते हुए सुनते हैं कि मुद्दों पर संवेदनशील होने का दम्भ भरते हैं लेकिन उसकी झलक उनके क्रिया कलाप में नही दिखती, क्यों…? हम कलाकारों का यह सामाजिक दायित्व बनता है कि हम उस संवेदनशीलता को अपने कला कर्म के माध्यम से अवश्य प्रस्तुत करें। इस दायित्व से भागें नहीं। कलाकार होना समाज के लिए सबसे बड़ा दायित्व है। इसे हर कलाकार को बख़ूबी समझना चाहिए। आज शहरीकरण ने सभी सम्बन्धो और मूल्यों को बदला है। सिर्फ कलाकृतियों का ऊँचे ऊँचे दामों में बिकना ही बड़ा कलाकार होने का अर्थ नहीं। बल्कि अपने समाज के प्रति दायित्वों को निभाना भी एक कला सृजनशील व्यक्ति का प्रमुख कर्तव्य है।
प्रतुल दास ने सिर्फ कैनवास पर ही चित्र नहीं गढ़ते बल्कि उन्होंने इंस्टालेशन आर्ट के रूप में भी बड़े बड़े काम किये हैं। भुवनेश्वर में टेराकोटा के मटके से एक टेम्पल का इंस्टालेशन और एक नदी के किनारे बम्बू के।माध्यम से भी बड़ा काम किया है और इन कामों को देखने के लिए आम जनता भी बड़ी संख्या में आई। प्रतुल के काम आम जनमानस से बिल्कुल जुड़ा हुआ है। आसानी से लोग जुड़ सकते हैं।
कलाकार को अपने कला के सौंदर्य को सामाजिक सरोकारों के लिए प्रयोग करना चाहिए। और इसके लिए एक नई चुनौतियों और नए नए माध्यमों को भी स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कलाकृति सिर्फ किसी दीवार की साज सज्जा के लिए ही नहीं बल्कि एक यह एक उत्प्रेरक के लिए भी है। इसीलिए तमाम कलाकारों के चित्रों ने बड़े बड़े सामाजिक व्यवस्था और नियम भी बदल डाले इतिहास गवाह है इस बात के ।
विशेष अतिथि के रूप में वरिष्ठ कला, साहित्य, रंगमंच आलोचक रविन्द्र त्रिपाठी ने प्रतुल के विचारों और उनके कलाकर्म को बड़े ही समीक्षात्मक रूप में कार्यक्रम में व्यक्त किया। अक्षत सिन्हा ने कार्यक्रम के दौरान बड़े ही गूढ़ और गहराई वाले प्रश्न के माध्यम से आमन्त्रित कलाकार के कलायात्रा और कलाकृतियों को उजागर किया। इस कार्यक्रम में देश विदेशों से भाग लिए दर्शकों , श्रोताओं ने भी प्रतुल दास से अपने प्रश्न किये और दास के उत्तर से संतुष्ट हुए। भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि आगामी दो रविवार के कार्यक्रम स्थगित रहेंगे। और नए कलाकार के साथ फिर अस्थाना आर्ट फोरम के मंच पर उपस्थित होंगे।

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