मदर्स डे : महंत देव्यागिरि का हुआ पुष्पाभिषेक, मातृ शक्ति का सम्मान करने का किया आह्वान

झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों को मास्क आदि भेंट कर कोरोना प्रोटोकॉल के प्रति किया गया जागरुक

क्राइम रिव्यू

लखनऊ। मातृ दिवस पर के अवसर पर रविवार को मनकामेश्वर मठ मंदिर की महंत देव्यागिरि का भव्य पुष्पाभिषेक हुआ। भक्तों ने मंदिर परिसर में मातृत्व शक्ति को नमन् करते हुए महंत पर फूलों की वर्षा की की गई। इस अवसर पर पूरा परिसर जयघोष, घंटे, घड़ियाल, शंखनाद से गूंज उठा। महंत भगवान बाबा मनकामेश्वर के शृंगार -पूजन के बाद मां गौरी से सर्वकल्याण की प्रार्थना की। उन्होंने मनकामेश्वर घाट के पास झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों को मास्क आदि भेंट कर कोरोना प्रोटोकॉल के प्रति जागरुक भी किया।

प्रकृति के रूप में होती है मातृशक्ति की पूजा

महंत देव्यागिरि ने मातृ दिवस के संदर्भ में कहा हमारे देश में मातृ शक्ति के रूप में प्रकृति के विविध स्वरूपों की पूजा दैनिक क्रम में की जाती है। हमारे देश की धरती और नदियों को ही नहीं तुलसी के पौधे और गाय तक को मां का सम्मान दिया गया है।

नवरात्रि पूजन मातृशक्ति की ही पूजा है

उन्होंने ने कहा कि नवरात्र साल में दो बार मातृशक्ति को नमन् करने के लिए ही मनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि जिस परिवार, समाज और देश में नारियों का सम्मान होता है ,वह हमेशा सम्पन्नता आती है. इसलिए हर नागरिक का यह पहला कर्तव्य और नैतिक धर्म है कि वह नारियों का सम्मान करें।

मातृ दिवस मनाने की पहली विचार धारा

मातृ दिवस के वैश्विक परिदृश्य के संदर्भ में महंत नै बताया कि कहा जाता है कि अमेरिकन एक्टिविस्ट एना जार्विस को अपनी माँ से बहुत लगाव था। इसके कारण उन्होंने विवाह तक नहीं किया। मां के निधन से वह इतनी अधिक दु:खी हुई कि उन्होंने उनकी याद में मातृ दिवस मनाना शुरू कर दिया। बाद में यह पूरी दुनिया में मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा।

दूसरी विचार धारा

दूसरी विचारधारा यह है कि ग्रीक देवताओं की मां स्य्बेले के सम्मान में यह दिवस मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि विश्व की हर संस्कृति में मां को बहुत सम्मान दिया गया है , फिर चाहें मां मारियम ही क्यों न हो ? उन्होंने कहा कि मां बच्चे की पहली पाठशाला होती है। उसके मार्गदर्शन में ही संस्कारी नागरिक तैयार हो सकते हैं। कोविड की विभीषिका में मातृ शक्ति के दायित्व कई गुना बढ़ गए है। ऐसे में उनके बहुआयामी रूप को भी वह प्रणाम करती हैं।

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